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आदिकाल

हिन्दी साहित्य का इतिहास(आदिकाल) हिन्दी साहित्य का इतिहास           आदिकाल आदिकाल का नामकरण विभिन्न इतिहासकारों द्वारा आदिकाल का नामकरण निम्नानुसार किया गया- इतिहासकार का नाम – नामकरण हजारी प्रसाद द्विवेदी-आदिकाल रामचंद्र शुक्ल-वीरगाथा काल महावीर प्रसाद दिवेदी-बीजवपन काल रामकुमार वर्मा-संधि काल और चारण काल राहुल संकृत्यायन-सिद्ध-सामन्त काल मिश्रबंधु-आरंभिक काल गणपति चंद्र गुप्त-प्रारंभिक काल/ शुन्य काल विश्वनाथ प्रसाद मिश्र-वीर काल धीरेंद्र वर्मा-अपभ्रंस काल चंद्रधर शर्मा गुलेरी-अपभ्रंस काल ग्रियर्सन-चारण काल पृथ्वीनाथ कमल ‘कुलश्रेष्ठ’-अंधकार काल रामशंकर शुक्ल-जयकाव्य काल रामखिलावन पाण्डेय-संक्रमण काल हरिश्चंद्र वर्मा-संक्रमण काल मोहन अवस्थी-आधार काल शम्भुनाथ सिंह-प्राचिन काल वासुदेव सिंह-उद्भव काल रामप्रसाद मिश्र-संक्रांति काल शैलेष जैदी–आविर्भाव काल हरीश-उत्तर अपभ्रस काल बच्चन सिंह- अपभ्रंस काल: जातिय साहित्य का उदय श्यामसुंदर दास- वीरकाल/अपभ्रंस का .. हिन्दी का सर्वप्रथम कवि... विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार हिंदी का पहला कवि- 👉राहुल सांकृत्यायन के अनुसार – स...

हिंदी कविता का महत्व ,स्वरूप,अवयव

   हिंदी कविता का  स्वरूप कविता हिंदी साहित्य की सबसे प्राचीन विद्या है विश्व के अधिकांश ग्रंथ की रचना कविता में ही हुई है कविता को परिभाषित करें तथा इसके स्वरूप को पहचानने का प्रयास प्राचीन काल से ही होता रहा है प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है की शब्द और अर्थ के सुंदर सामंजस्य को ही काव्य कहा जाता है इसी परिभाषा को आधार मानकर प्राचीन काव्य शास्त्रियों ने काव्य की आत्मा को ढूंढने का प्रयास किया था किसी ने रस को कविता की आत्मा कहा तो किसी ने ध्वनि को तो किसी ने रीति को तो किसी ने वक्रोक्ति को और किसी ने अलंकार को अलग-अलग शास्त्रियों ने इनके अलग-अलग परिभाषा दी है किंतु बाद में हिंदी साहित्य में कविता की परिभाषा दूसरे ढंग से की जाने लगी प्राचीन काल में अलंकार का बहुत महत्व था परंतु आधुनिक काल में अलंकार हीन कविता की परंपरा चल पड़ी है संघ के भी बंद नहीं रहेगी चंद हीन कविताओं की रचना होने लगी है कविता शब्द के गूढ़ अर्थ से अलग होकर सामान्य शब्दों का प्रयोग होने लगा है आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता की परिभाषा तथा स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है की हिदेकी मुक्ति की साधन...

रस परिभाषा व भेद उदाहरण सहित

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  रस क्या है   रस का सामान्य अर्थ है - आनंद मानव मानव प्राणी अपने जीवन में आनंद प्राप्त करना चाहता है,आनंद प्राप्ति करना ही उनका उद्देश्य है इसी प्रकार काव्य में भी आनंद होता है काव्य का रसास्वादन करते समय जो आनंद की अनुभूति होती है या हमारे चित्र में एक आनंद की प्राप्ति होती है उसी ही रस कहते हैं। रस की परिभाषा:- काव्य को पढ़ते समय ,सुनते समय हमारे चित्र में जो आनंद की अनुभूति होती हैं उसे ही रस कहते हैं। रस के भेद या प्रकार:- रस के मूल रूप से नौ(9) भेद माने गए हैं दो भेद बाद में जोड़े गए। 1 श्रंगार ,2.हास्य, 3.करुण,4.वीर,5.रौद्र  6.भयानक,7.वीभत्स,8अद्भुत,9शान्त, बाद मे जोड़े गये- वत्सल,भक्ति 1 श्रृंगार-रस:- श्रृंगार रस का विषय प्रेम होता है पुरुष के प्रति स्त्री के हृदय में या स्त्री के प्रति पुरुष के हृदय में जो प्रेम जागृत होता है उसी की व्यंजना श्रृंगार काव्य में होती हैं जैसे कृष्ण और राधा का प्रेम श्रृंगार के दो भेद होते हैं  संयोग वियोग

अलंकार- परिभाषा एवं भेद

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अलंकार का अर्थ अलंकार शब्द का वाक्य अर्थ है आभूषण अर्थ अर्थ आभूषण का अर्थ है शरीर को शोभा बढ़ाने वाले सामान्य बोलचाल की भाषा में कहे तो जिस प्रकार एक महिला की शोभा आभूषण से बढ़ती हैं ठीक उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार के माध्यम से बढ़ती है इसलिए कहा जाता है कि अलंकार काव्य के लिए एक आभूषण है अलंकार की परिभाषा काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक को अलंकार कहते हैं अलंकार के प्रमुख लक्षण काव्य में शोभा लाने वाले या उसे सौंदर्य प्रदान करने वाले तत्व अलंकार कहलाते हैं काव्य को अधिक आकर्षक और प्रभावशाली बनाने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं कथनी या अभिव्यक्ति को अधिक विशिष्ट बनाने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं अभिव्यक्ति में ऐसा धन लाने वाले प्रकारों को अलंकार कहते हैं कथन में विचित्र लाने वाले विधान को अलंकार कहते हैं काव्य में अलंकार का स्थान अलंकार के प्रयोग से काव्य में आकर्षण और चलता आती है अलंकार के प्रयोग से काव्य अधिक प्रभाव को और स्पष्ट होता है अलंकार के प्रयोग से अभिव्यक्ति में अधिक स्पष्ट था और सुबोध आती है अलंकार शब्द की शक्ति को सामर्थ्य प्रदान करता है अलंकार उनके अर...