हिंदी कविता का महत्व ,स्वरूप,अवयव
हिंदी कविता का स्वरूप
कविता हिंदी साहित्य की सबसे प्राचीन विद्या है विश्व के अधिकांश ग्रंथ की रचना कविता में ही हुई है कविता को परिभाषित करें तथा इसके स्वरूप को पहचानने का प्रयास प्राचीन काल से ही होता रहा है प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है की शब्द और अर्थ के सुंदर सामंजस्य को ही काव्य कहा जाता है इसी परिभाषा को आधार मानकर प्राचीन काव्य शास्त्रियों ने काव्य की आत्मा को ढूंढने का प्रयास किया था किसी ने रस को कविता की आत्मा कहा तो किसी ने ध्वनि को तो किसी ने रीति को तो किसी ने वक्रोक्ति को और किसी ने अलंकार को अलग-अलग शास्त्रियों ने इनके अलग-अलग परिभाषा दी है किंतु बाद में हिंदी साहित्य में कविता की परिभाषा दूसरे ढंग से की जाने लगी प्राचीन काल में अलंकार का बहुत महत्व था परंतु आधुनिक काल में अलंकार हीन कविता की परंपरा चल पड़ी है संघ के भी बंद नहीं रहेगी चंद हीन कविताओं की रचना होने लगी है कविता शब्द के गूढ़ अर्थ से अलग होकर सामान्य शब्दों का प्रयोग होने लगा है आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता की परिभाषा तथा स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है की हिदेकी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई हैं उसे कविता कहते हैं कविता से मानव भाव की रक्षा होती हैं मानव में पदार्थ या व्यापार विशेष मित्रों के सामने नाचने लगती हैं कविता मनो विगो का जागृत करने का उत्तम साधन है आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी नेवी कविता की परिभाषा देते हुए कहा है की कविता का लोक प्रसिद्ध अर्थ वह वाक्य है जिसमें भावेश कल्पना हो पद लालित्य हो तथा प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी हो
कविता के स्वरूप के मुख्य बिंदु
कविता में भाव तत्व की प्रधानता होती हैं कविता में चिंतन अथवा विचारों की जटिलता नहीं होती कविता में केवल अर्थग्रहण करा कर बात को स्पष्ट करने की क्षमता नहीं होती बल्कि इसमें इसके द्वारा बिंब विधान भी किया जाता है कविता का बिंब विधान ही पाठक के मन में कविता के प्रभाव को स्थायित्व प्रदान करता है एक प्रकार का शब्द चित्र होता है जो कविता में ही उपस्थित होता है इसी कारण कविता का अर्थ अभिधा की अपेक्षा लक्ष्णा अर्थात स्थिति की लाख छूटता के आधार पर ग्रहण किया जाता है कल्पना के मिश्रण से सौंदर्य चित्रण को कविता में सहज और ग्रह बनाया जाता है कविता की शब्दावली गधे से विशिष्ट होती हैं इसमें रात वक्ता अनिवार्य रूप से मौजूद होती हैं तथा शब्दों का संयोजन पाठक की हृदय को सहज ही छू जाता है कम से कम शब्दों में बड़ी से बड़ी बात अथवा समस्या को बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया जाता है
कविता का महत्व
जब हम अपनी बात को या अपने भावों को अभिव्यक्त नहीं कर पाते पाते हैं और किसी भंवर जाल में फंस जाते हैं उस समय कविता की ही 2 पंक्तियां हमें उस भंवर जाल से बाहर निकालती हैं आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है की कविता की प्रेरणा से कार्य में प्रवृत्ति बढ़ जाती है प्राचीन काल में कविता का कविता को मनोरंजन का साधन मात्र समझा जाता था उस समय कविता दरबारी बिंद मात्र सिंह सेब दबी थी कविता सिर्फ मनोरंजन की वस्तु ही नहीं अपितु कविता कम से कम शब्दों और अपनी विशिष्ट भाषा तथा शिल्प सौंदर्य से बातों को स्पष्ट करते हुए चलती हैं और बहुत सी बातें उसमें छिपी रहती हैं जिन्हें समझने के लिए उन्हें को खोलते रहना जरूरी होता है अतः यह गधे की अपेक्षा कठिन लगती हैं लेकिन यह भी तो देखिए की कविता ही हैं जो अधिक देर तक आपको याद रह जाती हैं इस संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की कविता का अंतिम उद्देश्य मनोरंजन है पर मेरी समझ में मनोरंजन का अंतिम उद्देश्य नहीं है कविता कम से कम शब्दों में जितनी सरल सुखद तथा लयात्मक ढंग से अधिक से अधिक बातें वक्त कर सकती हैं उतना गद्य नहीं कर सकता है इसलिए कविता अधिक समय तक याद रहती हैं लयात्मक होने के कारण इसे गुनगुनाया भी जा सकता है दूर सुनसान रास्तों में अकेले जा रहे हो तो यह आपका मित्र भी हो सकती हैं इस प्रकार हम देखते हैं कि कविता हमारे जीवन के अन्य आवश्यकताओं की तरह एक प्रमुख आवश्यकता है कविता के माध्यम से प्राप्त होने वाली किसी भी भौतिक सुख से अलग और बेहतर होता है यहां पर आप यह न समझे की कविता केवल किताबों और अखबारों में छपी हुई होती है बल्कि गीत गजल फिल्मी धुन फिल्म नज़्म शेर आदि सभी कविता के ही विभिन्न रूप है
कविता के अवयव
कविता के आगे से हमारा तात्पर्य उन तत्वों से हैं जिनसे मिलकर कविता बनती है अथवा कविता पढ़ते समय जिन तत्वों पर मुख्य रूप से हमारा ध्यान आकर्षित होता है काव्य अथवा कविता के आरंभिक काल से ही कविता के स्वरूप को समझने का प्रयास विद्वानों ने किया प्राचीन काल में भारतीय काव्यशास्त्र के अंतर्गत कविता की तुलना एक सुंदर युवती से की गई है और कहा गया है शब्दार्थ जिसका शरीर हैं अलंकार जिसके आभूषण है रीति शारीरिक अवयवों का गठन है गुण स्वरूप और रस आत्मा है इनके अलावा छंद को भी काव्य का अबे माना जाता है इस आधार पर काव्य के छह अव्य बताए गए हैं किंतु आधुनिक काल तक आते-आते इन के विषय में विद्वानों की मान्यता बदल गई है प्रीति रस और अलंकार पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है इसके स्थान पर कविता का अर्थ जाने वाली बात और विचार 10t अथवा कविता के चिंतन को विशेष महत्व दिया जाने लगा है किंतु उपयुक्त क्यों पूरी तरह बेकार साबित करके कविता से अलग नहीं किया जा सकता इसलिए कविता के बारे में अब कहा जाने लगा है कि काव्य के अंदर उसका वो पक्ष और कला पक्ष है दोनों ही महत्वपूर्ण है अंतरण काव्य को उत्कृष्ट में बनाते हैं और वही रंग कला पक्ष का सार्थकता प्रदान करते हैं
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