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धोरा वाळा देश जाग रे

 मनुज देपावत धोरां आळा देस जाग रे, ऊंठां आळा देस जाग। छाती पर पैणा पड़या नाग रे, धोरां आळा देस जाग।। धोरां आळा देस जाग रे... उठ खोल उनींदी आंखड़ल्यां, नैणां री मीठी नींद तोड़ रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो, सपनां रो कूड़ो मोह छोड़ थारी आंख्यां में नाच रह्या, जंजाळ सुहाणी रातां रा तूं कोट बणावै उण जूनोड़ै, जुग री बोदी बातां रा रे बीत गयो सो गयो बीत, तूं उणरी कूड़ी आस त्याग। छाती पर पैणा... खागां रै लाग्यो आज काट, खूंटी पर टंगिया धनुष-तीर रे लोग मरै भूखां मरता, फोगां में रुळता फिरै वीर रे उठो किसानां-मजदूरां, थे ऊंठां कसल्यो आज जीण ईं नफाखोर अन्याय नैं, करदयो कोडी रो तीन-तीन फण किचर काळियै सांपां रो, आज मिटा दे जहर-झाग। छाती पर पैणा... रे देख मिनख मुरझाय रह्यो, मरणै सूं मुसकल है जीणो अै खड़ी हवेल्यां हँसै आज, पण झूंपड़ल्यां रो दुख दूणो अै धनआळा थारी काया रा, भक्षक बणता जावै है रे जाग खेत रा रखवाळा, आ बाड़ खेत नैं खावै है अै जका उजाड़ै झूंपड़ल्यां, उण महलां रै लगा आग। छाती पर पैणा... अै इन्कलाब रा अंगारा, सिलगावै दिल री दुखी हाय पण छांटां छिड़कां नहीं बुझैली, डूंगर लागी आज लाय अब दिन आवैला ...

हिन्दी साहित्य प्रश्नोत्तरी

 ... हिन्दी साहित्य का इतिहास(आदिकाल).. 👉आदिकाल का नामकरण........ विभिन्न इतिहासकारों द्वारा आदिकाल का नामकरण निम्नानुसार किया गया- 🎉इतिहासकार का नाम   - नामकरण🎉 👉हजारी प्रसाद द्विवेदी -आदिकाल  👉रामचंद्र शुक्ल -वीरगाथा काल 👉महावीर प्रसाद दिवेदी -बीजवपन काल 👉रामकुमार वर्मा- संधि काल और चारण काल 👉राहुल संकृत्यायन- सिद्ध-सामन्त काल 👉मिश्रबंधु- आरंभिक काल  गणपति चंद्र गुप्त -प्रारंभिक काल/ शुन्य काल 👉विश्वनाथ प्रसाद मिश्र- वीर काल  👉धीरेंद्र वर्मा -अपभ्रंस काल 👉चंद्रधर शर्मा गुलेरी -अपभ्रंस काल 👉ग्रियर्सन- चारण काल 👉पृथ्वीनाथ कमल 'कुलश्रेष्ठ'- अंधकार काल 👉रामशंकर शुक्ल- जयकाव्य काल 👉रामखिलावन पाण्डेय- संक्रमण काल 👉हरिश्चंद्र वर्मा- संक्रमण काल 👉मोहन अवस्थी- आधार काल 👉शम्भुनाथ सिंह- प्राचिन काल 👉वासुदेव सिंह- उद्भव काल 👉रामप्रसाद मिश्र- संक्रांति काल 👉शैलेष जैदी - आविर्भाव काल 👉हरीश- उत्तर अपभ्रस काल 👉बच्चन सिंह- अपभ्रंस काल: जातिय साहित्य का उदय 👉श्यामसुंदर दास- वीरकाल/अपभ्रंस का #हिन्दी_का_सर्वप्रथम_कवि $विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार ह...

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सूरदास का साहित्य एवं जीवन परिचय

 सूरदास(1478-1583) 1. सूरदास भक्ति काल के कृष्ण काव्य परंपरा के प्रमुख के कवि थे 2. चौरासी वैष्णव की वार्ता अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के निकट सीही गांव में हुआ। 3. सूरदास के गुरु का नाम वल्लभाचार्य था। 4. सूरदास जन्मांध थे या बाद में अंधे हुए इस विषय पर मतेैक्य नहीं है। 5.(सूरदास के निधन पर )गोसाई विट्ठल दास ने कहा- पुष्टीमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेनौ होय सो लेउ। 6. सूरदास की प्रमुख तीन रचनाएं हैं- सूरसागर,सूर- सारावली और साहित्य लहरी। 7.साहित्य लहरी के एक पद के अनुसार सूरदास ने खुद को चंद बरदई के वंशज माने हैं। 8. सूरदास पहले विनय और दास्य भाव के पद लिखा करते थे किंतु वल्लभाचार्य की भेंट के बाद उन्होंने वात्सल्य और श्रृंगार के पद लिखे। 9. साहित्य लहरी में सूरदास के दृष्ट कूट के पद संकलित हैं। 10. सूरदास ब्रजभाषा के पहले सशक्त कवि माने जाते हैं। 11.सूरदास के श्रृंगारी व दृष्टकूट  पदों की रचना विद्यापति की पद्धति के आधार पर हुई मानी जाती हैं। 12. सूरदास वात्सल्य और श्रंगार के क्षेत्र में उच्चतम माने जाते हैं इसलिए उनको वात्सल्य और श्रंगार रस का सम्राट कहा जाता है। 13...

तुलसीदास जी (साहित्य व जीवन परिचय)

 तुलसीदास (1532 -1623) 1.तुलसीदास का जन्म सन 1532 ई.मे राजापुर गांव (बांदा जिला,उत्तर प्रदेश) में हुआ। 2.तुलसीदास की मृत्यु सन 1623 ईसवी काशी में हुई। 3.तुलसीदास के गुरु नरहरिदास था। 3. तुलसीदास ने सन 1574 ईसवी अयोध्या में 'रामचरित्- मानस की रचना प्रारंभ की जो 2 वर्ष 7 माह से पूर्ण हुई। 4. तुलसीदास लोकमंगल की साधना के कवि माने जाते हैं। 5.राम चरित् मानस हिंदी का श्रेष्ठ महाकाव्य माना जाता हैं।6.रामचरितमानस की रचना दोहा-चौपाई शैली में हुई(भाषा अवधि है) 7.विनय पत्रिका में विनय और आत्मनिवेदन के पद हैं। 8.नाभादास ने तुलसी दास को 'कलिकाल का वाल्मीकि' कहां हैं। 9. ग्रियर्सन ने-तुलसीदास को बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक बताया हैं। 10. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा-भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि कवि तुलसी ही हैं। 11. विसेंट स्मिथ ने कहा- तुलसीदास मुगल काल का सबसे बड़ा आदमी था। 12.आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा-भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने की अपार धैर्य लेकर आया हो। 13.रहीम के आग्रह पर तुलसीदास ने 'बरवै-रामायण' की रचना की। 14.तुलसीदास ने हनुमान बाहु...

मीरां का जीवन परिचय

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मीरां(1498-1546ई.) 01. मीरा का जन्म सन 1498.ई कुड़की गांव (मारवाड़ रियासत)राजस्थान में हुआ था। 2. संत रैदास मीरां के गुरु माने जाते हैं। 3. मीरा सगुण धारा की महत्वपूर्ण भक्त कवियत्री थी। 4 मीरा का विवाह सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ। 5. मीरा का अंतिम समय द्वारका में बीता और वही रणछोड़ दास जी की मूर्ति में समाहित हो गई। 6.मीरा की भक्ति माधुर्योपासना के रस में समाहित हैं। 7. मीरा भक्ति काल में स्त्री मुक्ति की आवाज बनकर उभरी। 8. मीराबाई की पदावली का संपादन आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने किया। 9. मीरा मुक्तावली का संपादन नरोत्तम दास स्वामी ने किया। 10. सुमित्रानंदन पंत ने मीरा के संबंध में कहा है कि-भक्ति के तपोवन की शकुंतला तथा राजस्थान के मरुस्थल की मंदाकिनी हैं। 11. मीरां के बचपन का नाम पेमल था। 12. मीरां की कविता का प्रमुख रस विप्रलंभ श्रृंगार हैं। 13. बसो मेरे नैनन में नंदलाल-पंक्ती मीराबाई की हैं। 🖋🖋🌹🌿शंकरनाथ,राजस्थान🌿🌹

हिंदी कविता का महत्व ,स्वरूप,अवयव

   हिंदी कविता का  स्वरूप कविता हिंदी साहित्य की सबसे प्राचीन विद्या है विश्व के अधिकांश ग्रंथ की रचना कविता में ही हुई है कविता को परिभाषित करें तथा इसके स्वरूप को पहचानने का प्रयास प्राचीन काल से ही होता रहा है प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है की शब्द और अर्थ के सुंदर सामंजस्य को ही काव्य कहा जाता है इसी परिभाषा को आधार मानकर प्राचीन काव्य शास्त्रियों ने काव्य की आत्मा को ढूंढने का प्रयास किया था किसी ने रस को कविता की आत्मा कहा तो किसी ने ध्वनि को तो किसी ने रीति को तो किसी ने वक्रोक्ति को और किसी ने अलंकार को अलग-अलग शास्त्रियों ने इनके अलग-अलग परिभाषा दी है किंतु बाद में हिंदी साहित्य में कविता की परिभाषा दूसरे ढंग से की जाने लगी प्राचीन काल में अलंकार का बहुत महत्व था परंतु आधुनिक काल में अलंकार हीन कविता की परंपरा चल पड़ी है संघ के भी बंद नहीं रहेगी चंद हीन कविताओं की रचना होने लगी है कविता शब्द के गूढ़ अर्थ से अलग होकर सामान्य शब्दों का प्रयोग होने लगा है आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता की परिभाषा तथा स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है की हिदेकी मुक्ति की साधन...

रस परिभाषा व भेद उदाहरण सहित

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  रस क्या है   रस का सामान्य अर्थ है - आनंद मानव मानव प्राणी अपने जीवन में आनंद प्राप्त करना चाहता है,आनंद प्राप्ति करना ही उनका उद्देश्य है इसी प्रकार काव्य में भी आनंद होता है काव्य का रसास्वादन करते समय जो आनंद की अनुभूति होती है या हमारे चित्र में एक आनंद की प्राप्ति होती है उसी ही रस कहते हैं। रस की परिभाषा:- काव्य को पढ़ते समय ,सुनते समय हमारे चित्र में जो आनंद की अनुभूति होती हैं उसे ही रस कहते हैं। रस के भेद या प्रकार:- रस के मूल रूप से नौ(9) भेद माने गए हैं दो भेद बाद में जोड़े गए। 1 श्रंगार ,2.हास्य, 3.करुण,4.वीर,5.रौद्र  6.भयानक,7.वीभत्स,8अद्भुत,9शान्त, बाद मे जोड़े गये- वत्सल,भक्ति 1 श्रृंगार-रस:- श्रृंगार रस का विषय प्रेम होता है पुरुष के प्रति स्त्री के हृदय में या स्त्री के प्रति पुरुष के हृदय में जो प्रेम जागृत होता है उसी की व्यंजना श्रृंगार काव्य में होती हैं जैसे कृष्ण और राधा का प्रेम श्रृंगार के दो भेद होते हैं  संयोग वियोग

अलंकार- परिभाषा एवं भेद

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अलंकार का अर्थ अलंकार शब्द का वाक्य अर्थ है आभूषण अर्थ अर्थ आभूषण का अर्थ है शरीर को शोभा बढ़ाने वाले सामान्य बोलचाल की भाषा में कहे तो जिस प्रकार एक महिला की शोभा आभूषण से बढ़ती हैं ठीक उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार के माध्यम से बढ़ती है इसलिए कहा जाता है कि अलंकार काव्य के लिए एक आभूषण है अलंकार की परिभाषा काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक को अलंकार कहते हैं अलंकार के प्रमुख लक्षण काव्य में शोभा लाने वाले या उसे सौंदर्य प्रदान करने वाले तत्व अलंकार कहलाते हैं काव्य को अधिक आकर्षक और प्रभावशाली बनाने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं कथनी या अभिव्यक्ति को अधिक विशिष्ट बनाने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं अभिव्यक्ति में ऐसा धन लाने वाले प्रकारों को अलंकार कहते हैं कथन में विचित्र लाने वाले विधान को अलंकार कहते हैं काव्य में अलंकार का स्थान अलंकार के प्रयोग से काव्य में आकर्षण और चलता आती है अलंकार के प्रयोग से काव्य अधिक प्रभाव को और स्पष्ट होता है अलंकार के प्रयोग से अभिव्यक्ति में अधिक स्पष्ट था और सुबोध आती है अलंकार शब्द की शक्ति को सामर्थ्य प्रदान करता है अलंकार उनके अर...

काव्य के अंग या तत्व

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काव्य के प्रमुख - दो पक्ष माने गए हैं भाव पक्ष और कला पक्ष अथवा वर्ण्यवस्तु और शिल्प वस्तु भाव पक्ष या वर्ण वस्तु के अंतर्गत रस आता है उसी के साथ गुण दोष आदि की भी चर्चा होती है और कला पक्ष या शिल्प वस्तु के अंतर्गत अलंकार,शब्द-शक्ति छन्द,रीति आदि आते हैं ।

काव्य के रूप

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काव्य के प्रमुख रूप से दो भेद होते हैं 1. दृश्य काव्य 2. श्रव्य काव्य दृश्य काव्य में नेत्रों से देखे जाने वाले नाटक आदि को रखा जा सकता है और श्रव्य काव्य में सुनने सुनाने योग्य काव्य को यथा कहानी कविता आदि रखा जा सकता है दृश्य काव्य में नाटक आदि होते है श्रव्य काव्य में पहले प्रमुख दो भेद पद्य और गद्य किए गए पद्य के पुन: प्रबंध और मुक्तक के दो भेद किए गए प्रबंध में क्रमबद्ध पद्य रचना आती है और मुक्तक में सिलसिले की आवश्यकता न होकर उसका प्रत्येक छन्द एक दूसरे से मुक्त रहता है। प्रबंध काव्य के आकार की दृष्टि से दो भेद महाकाव्य और खंडकाव्य किए जाते हैं। महाकाव्य में समग्र जीवन का चित्रण करने का प्रयास रहा है जैसे राम चरित्र मानस महाकाव्य है इसलिए तुलसीदास जी ने श्री राम के बाल्यकाल से लेकर उनके जीवन के चरमोत्कर्ष तक का समग्र जीवन अंकित करने का प्रयास किया है खंडकाव्य में जीवन के एक खण्ड या इसके हिस्से मात्र का चित्रण होता है पंचवटी एक खंड काव्य का उदाहरण है जिसमें मैथिलीशरण गुप्त ने भगवान श्री राम के पंचवटी संबंधी जीवन के भाग का चित्रण किया है इसी प्रकार मुक्तक के दो भेद माने गए है...